पुस्तक परिचय
मेरा विश्वास है कि देश-दुनिया के लोग इस पुस्तक को देखेंगे-पढेंगे तो उनके मन-मन्दिर में ब्रजदर्शन का विचार अवश्य जन्म लेगा। यदि ऐसा होगा तो मैं अपने इस श्रम साध्य कार्य को सार्थक मानूँगी।मुख्य संपादक: श्रीमती हेमामालिनी जी, सांसद,मथुरा
श्रीराधाकृष्ण की अनन्य भक्ति एवं ब्रजभूमि के प्रति समर्पण से ही यह दिव्य कृति संभव हो सकी है !! - जी एस पाण्डेय
संपादन एवं सहयोग
डॉ. अशोक बंसल अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर होने के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य के भी मर्मज्ञ हैं। आपने हिंदी भाषा में अनेकों पुस्तकें एवं वृत्त चित्रों की रचना कर हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट स्थान बना लिया है।
काफी टेबल बुक ‘चल मन वृन्दावन’ का कुशल सम्पादन डॉ. अशोक बंसल के द्वारा किया गया है। इस हेतु ब्रज की माटी में पले बढ़े तथा ब्रज के विकास के लिए समर्पित श्री जनार्दन शर्मा तथा आलेख चयन हेतु श्री सुनील आचार्य का सहयोग भी उन्हें प्राप्त हुआ। ‘चल मन वृन्दावन’ के माध्यम से डॉ. बंसल ने ब्रज संस्कृति और परम्परा से संपूर्ण विश्व को अत्यन्त सुरुचिपूर्ण ढंग से परिचित कराया है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक सराहनीय प्रयास है जिससे ब्रज भ्रमण हेतु आने वाले पर्यटक निश्चितरूप से लाभान्वित होंगे । पुस्तक के प्रकाशक हैं बिमटेक फाउन्डेशन , ग्रेटर नोएडा।
आइए ब्रज के पावन स्थलों की यात्रा प्रारंभ करें
उत्तर प्रदेश ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण भारतवर्ष में प्रमुख स्थान रखता है। इस भू-भाग में अनेकों नगर विशिष्ट संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को अपने अङ्क में संजोए हुए अवस्थित हैं। इन प्रमुख नगरों में मथुरा सम्पूर्ण विश्व में श्रीकृष्ण की अवतरण-स्थली होने के कारण अति प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण मथुरा में अवतरित हुए तथा सम्पूर्ण ब्रज-मण्डल में उन्होंने लीलाएं की। ब्रज-मण्डल में वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, महावन, बल्देव, नन्दगाँव, बरसाना, डीग तथा कामवन आदि सम्मिलित हैं। इसकी सीमा ८४ कोस है। भगवान श्रीकृष्ण से संबंध होने के कारण मथुरा-वृन्दावन का इतिहास ५००० वर्ष से भी अधिक पुराना है।
प्राचीनकाल में ब्रज-मण्डल शूरसेन जनपद के नाम से विख्यात था। मथुरा की गणना सप्तपुरियों के अन्तर्गत होने से इस क्षेत्र का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी के अनुयायिओं के लिए भी मथुरा आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। हम सभी के मन में जीवन में कम से कम एक बार ब्रज के इन दिव्य तीर्थस्थलों के दर्शन की अभिलाषा रहती है। इनके विषय में अधिक से अधिक जानने की उत्कण्ठा सदैव बनी रहती है। इस हेतु हम किसी ग्रन्थ अथवा वैबसाइट का सहारा लेते हैं। इसी संदर्भ में हमारे परिचित श्री अशोक बंसल जी ने अवगत कराया कि उन्होंने इस विषय से संबंधित एक कॉफी टेबलबुक चल मन वृन्दावन का लेखन किया है जो अब छप कर तैयार है। मुझे भी उनके द्वारा साभार इसकी एक प्रति प्रदान की गई जिससे मैं भी अपने विचार व्यक्त कर सकूं। इस हेतु उन्होंने पुस्तक से संबंधित अंशों को उद्धृत करने की अनुमति प्रदान की।
श्री बंसलजी ने ब्रज-मण्डल के दर्शनीय स्थलों का बहुत ही रोचक एवं मनमोहक सचित्र वर्णन इस अनुपम कृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है। भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलास्थलियों के इस अभूतपूर्व संग्रहणीय संकलन से हम आपका परिचय अपनी इस प्रस्तुति के माध्यम से करवा रहे हैं। कहना न होगा कि इस पुस्तक का कलेवर इतने आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया गया है कि इसका अध्ययन प्रारंभ करते ही हम ब्रजयात्रा पर निकल पड़ते हैं तथा हमारा मन पग पग पर साक्षात श्रीकृष्ण की मनोहारी लीलाओं की अनुभूति से आत्मविभोर हो जाता है। आइये इस अविस्मरणीय दिव्य यात्रा का शुभारम्भ ‘चल मन वृन्दावन’ के साथ करते़ हैं।
आइए पुस्तक से उद्धृत अंशों के साथ ब्रज के पावन स्थलों की यात्रा प्रारंभ करें
॥ वृन्दावन के सप्त देवालय ॥
ब्रज की सम्पूर्ण संस्कृति मन्दिरमय है। वृन्दावन मन्दिरों के शहर के रूप में प्रख्यात है। यहाँ के प्राचीन सात मन्दिर ‘सप्तदेवालय’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। पुस्तक का प्रारंभ इन्हीं सप्तदेवालयों के सचित्र विस्तृत वर्णन से किया गया है।
1.मदनमोहन मन्दिर, 2.गोविन्ददेव मन्दिर, 3.गोपीनाथ मन्दिर, 4.राधादामोदर मन्दिर, 5.राधारमण मन्दिर, 6.राधागोकुलानन्द मन्दिर, 7.राधाश्यामसुन्दर मन्दिर।
॥ वृन्दावन, मथुरा एवं ब्रजके अन्य देवालय ॥
इस श्रंखला में प्रथम श्रीयमुना तट केशीघाट पर स्थित जुगलकिशोरजी का मन्दिर है। द्वतीय श्रीहितहरिवंश के उपास्य राधावल्लभजी का मन्दिर है। तृतीय द्रविड़ शैली में निर्मित विशालकाय अत्यन्त वैभवशाली श्रीरंगजी मन्दिर है जिसमें 60 फीट ऊँचा स्वर्णपत्र जटित ध्वजस्तम्भ है। यहाँ प्रतिवर्ष रथोत्सव मनाया जाता है। चतुर्थ श्वेत संगमरमर से निर्मित अत्यन्त मनमोहक शाहजी मन्दिर अपनी वास्तुकला,चित्रकला तथा मूर्तिकला का दर्शनीय देवालय है। मन्दिर का मुख्य आकर्षण वसन्ती कमरा है जो भक्तों के दर्शनार्थ वर्ष में केवल दो बार ही खुलता है। इसमें 15 फुट ऊँचे 12 सर्पाकार खंभे लगे हैं जो एक ही पत्थर से बनाए गए हैं जो वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण हैं।
यह पावन यात्रा वृन्दावन, मथुरा, बल्देव, बरसाना, नन्दगाँव, गोकुल-महावन, रावल के दर्शन के साथ आगे बढ़ती है। आइए इन स्थलों के दर्शन करें।
जयपुरमन्दिर,वृन्दावन – जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा राजस्थान शैली में निर्मित यह मन्दिर अत्यन्त विलक्षण है। मन्दिर में श्रीआनन्दबिहारीजी, श्रीराधामाधव तथा श्रीहंसगोपालजी के श्रीविग्रह विराजमान हैं।
श्रीकृष्णजन्मस्थान,मथुरा- हिन्दुओं के आराध्य श्रीकृष्ण का जन्म लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था वहाँ यह विशाल आकर्षक मन्दिर स्थापित है। मथुरा आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए श्रीकृष्णजन्मस्थान के नाम से प्रसिद्ध यह मन्दिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर यहाँ विशाल आयोजन होता है जिसमें पूरे विश्वसे श्रद्धालु आते हैं।
प्रेममन्दिर वृन्दावन- श्रीराधाकृष्ण के ५४ एकड़ में फैले इस विशाल अद्भुत मन्दिर का निर्माण कृपालुजी के द्वारा सन् २०१२ में करवाया गया था । इटैलियन सफेद संगमरमर से निर्मित इस मन्दिर के निर्माण में ग्यारह वर्ष का समय लगा। सुन्दर उद्यानों में श्रीराधाकृष्ण की लीलाएं तथा फुव्वारे मन्दिर को अप्रतिम सौन्दर्य प्रदान करते हैं। श्रीद्वारिकाधीश मन्दिर, मथुरा- पुष्टिमार्गीय संप्रदाय का यह प्राचीन मन्दिर मथुरा के राजाधिराज बाजार में स्थित है। राजस्थानी शैली में निर्मित इसकी वास्तुकला एवं चित्रकारी अद्वितीय है। यहाँ प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले उत्सव श्रीकृष्णजन्माष्टमी, दीपावली, वसंतोत्सव एवं श्रावणमास की घटाएं एवं हिंडोले प्रसिद्ध हैं।
श्रीदाऊजीमन्दिर,बल्देव- श्रीकृष्णके ज्येष्ठ भ्राता बलरामजी का यह मन्दिर मथुरा से २१ किलोमीटर दूर बल्देव में स्थित है। मन्दिर में बलरामजी के साथ उनकी पत्नी रेवतीजी के दर्शन होते हैं। श्रीराधारानी का मन्दिर,बरसाना- भानुगढ़ पहाड़ी पर स्थित श्रीजी के इस मन्दिर तक पहुँचने के लिए २०० सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ मनाए जाने वाले होली एवं राधाष्टमी के पर्व निराले हैं जिनमें दूर-दूर से दर्शनार्थी आते हैं। नन्दगाँव – मथुरा से ५४ किलोमीटर दूर नंदीश्वर पर्वत पर श्रीकृष्ण, नंदबाबा तथा यशोदा के प्राचीन मंदिर हैं। गोकुल-महावन – मथुरा से १५ किलोमीटर दूर यमुनातट पर श्रीकृष्ण की पौराणिक लीलास्थली है। रावल – मथुरा से 08 किलोमीटर दूर श्रीकृष्ण की प्रेयसी श्रीराधारानी की जन्मस्थली के रूपमें विख्यात है।
॥ ब्रजमें होली की ठिठोली ॥
ब्रज में होली का पर्व बहुत उल्लास से मनाया जाता है। ब्रजाँचल की होली स्थान विशेष के अनुरूप अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। बरसाने की लठामार होली का अलग ही आनन्द है। फालैन की होली में आग के मध्य गुजरता हुआ पंडा अनायास ही प्रह्लाद का स्मरण करा देता है। बल्देव में खेली जाने वाली होली दाऊजी का हुरंगा के नाम से प्रसिद्ध है। मंच पर खेली जाने वाली छड़ीमार होली और फूलों की होली का अपना अलग ही आनन्द है। बरसाने की अनोखी लड्डूमार होलीमें लड्डुओं की वर्षा भक्तों पर की जाती है। गीत- संगीत के साथ मनाए जाने वाली ब्रज की होली भक्ति, उल्लास और मस्ती का समन्वय है।
॥ ब्रजके अन्य आकर्षण ॥
ब्रज विविधताओं से भरा हुआ क्षेत्र है। पुस्तक में इनका सचित्र वर्णन किया गया है। आइये हम भी इनसे वंचित न रहें। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा – लगभग साढ़े पाँच सौ वर्षों से यह परम्परा अनवरत चल रही है। इसके अन्तर्गत चौरासी कोस परिधि में फैले ब्रजक्षेत्र की परिक्रमा की जाती है तथा ब्रज के समस्त वनों-उपवनों,कुंडों,यमुनाघाटों तथा देवालयों का दर्शन पूजन किया जाता है। यह यात्रा १३०० गाँवों को स्पर्श करती है। लगभग ४५ दिनों में पूर्ण होने वाली परिक्रमा में पिकनिक के आनन्द के साथ पुण्य की प्राप्ति होती है। गोवर्द्धन – मथुरा से २१ किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल अत्यन्त लोकप्रिय तथा महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित विशाल पर्वत को जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए कनिष्ठा पर धारण किया था, बड़ी श्रद्धा एवं आस्था से पूजा जाता है। इसकी परिक्रमा भी की जाती जिसमें अनेकों पौराणिक पूजनीय स्थलों के दर्शन होते हैं। रासलीला – भारतवर्ष के लोकनाटकों में ब्रज की रासलीलाओं का विशिष्ट स्थान है। वृन्दावन में श्रीहित हरिवंश ने रासलीला को श्रीकृष्ण की उपासना के एक नवीन अंग के रूप में आत्मसात किया। स्वामी हरिदास व हितहरिवंश रासलीला मंचन के समय संगीत तथा गायन से अपना योगदान देते थे। ब्रज का करहला ग्राम रासलीला का बड़ा केन्द्र है। रासलीला का मंचन मन्दिर, नदीतट ,बगीची भवनों तथा मंच पर किया जा सकता है। तीन लोक से न्यारी मथुरा, वर्षभर चलने वाले उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। मथुरा में भाईदूज पर होने वाला यमद्वितीया पर्व तथा कार्तिक शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला कंसवध मेला अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।
ब्रज की लोककलाओं की बात करें तो चरकुला नृत्य, नृसिंहलीला तथा साँझीकला अति प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त मथुरा का राजकीय संग्रहालय, होलीगेट जिसे अब तिलकद्वार के नाम से जाना जाता है, सतीबुर्ज, वंशीवट, मानसरोवर भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। मथुरा महात्मा बुद्ध तथा महावीर स्वामी के अनुयाइयों की आस्था का एक प्रमुख केन्द्र है। पुस्तक में आगे चैतन्य महाप्रभु तथा उनके षड्आचार्यो, स्वामीहरिदास, अष्टछाप के कवियों, ब्रजके पाँच संप्रदायों का वर्णन किया गया है। ब्रजकी अमूल्य निधि के रूप में रसखान, ताजबीबी, बणीठणी, मीराबाई, इस्कान संस्थापक श्रीलप्रभुपाद, सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव के ब्रज प्रवास तथा स्वामी विरजानन्द का विशिष्ट वर्णन किया गया है। यह यात्रा नाथद्वारा जिसे एक लघु ब्रज की मान्यता प्रदान की गई है, ब्रज के वानस्पतिक सौन्दर्य, जगप्रसिद्ध मथुराके पेड़े के स्वाद तथा मथुरा के अखाड़ों एवं प्रसिद्ध पहलवानों की चर्चा के साथ मथुरा के आधुनिक मन्दिर इंडियन ऑयल मथुरा रिफाइनरी के सचित्र वर्णन के साथ संपन्न होती है।
॥ जय श्रीराधेकृष्ण ॥
निर्माण एवं प्रस्तुति – जी एस पाण्डेय
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